• शिक्षा व्यवस्था की विसंगतियों के खिलाफ आवाज़

    सोमवार को इंडिया ब्लॉक के छात्र संगठनों ने शिक्षा के निजीकरण, भगवाकरण के विरोध और छात्र संघ की बहाली को लेकर जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया

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    सोमवार को इंडिया ब्लॉक के छात्र संगठनों ने शिक्षा के निजीकरण, भगवाकरण के विरोध और छात्र संघ की बहाली को लेकर जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया। छात्रों का आरोप है कि सरकार आरएसएस की विचारधारा थोप रही है और शिक्षा को व्यापार बना रही है। इस प्रदर्शन में एनएसयूआई, आईसा, एसएफआई, एआईएसएफ, एमएसएफ, सीआरजेडी और समाजवादी छात्रसभा ये सभी छात्र संगठन एक बैनर के तले पहुंचे। छात्र संगठनों का कहना है कि सरकार की नीतियों से शिक्षा महंगी हुई है. गरीब बच्चों की पहुंच से अच्छी शिक्षा दूर होती जा रही है। छात्रों ने आरोप है कि शिक्षा का निजीकरण और केंद्रीकरण किया जा रहा है। गरीब विरोधी नीतियों का असर मध्यम वर्ग के छात्रों की शिक्षा पर पड़ रहा है।

    धांधली और पेपर लीक जैसी समस्याओं के खिलाफ छात्र संगठनों ने राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए हैं। इसके अलावा विश्वविद्यालयों में चुनावों की बहाली, प्रशासन में पारदर्शिता और आरक्षण से जुड़े मुद्दों पर भी छात्रों ने सरकार का ध्यान आकर्षित किया। इस प्रदर्शन को लेकर एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी ने कहा, 'सरकार शिक्षा प्रणाली को कमजोर कर रही है। छात्र संघों के चुनावों पर रोक से साफ है कि सरकार शिक्षित और जागरूक युवाओं से डरती है। अगर सरकार हमारी मांगें नहीं मानती, तो आंदोलन और बड़ा होगा और देशभर में गूंज सुनाई देगी।'

    महीने भर के भीतर दूसरी बार इस तरह से अलग-अलग छात्र संगठन जंतर-मंतर पर एकत्र हुए हैं। इधर अलग-अलग विश्वविद्यालयों में जागरुक छात्र अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाते ही रहते हैं। लेकिन इस वक्त जिस तरह से सरकार की नीतियों के खिलाफ छात्र संगठन एकजुट हो रहे हैं, वह देश में बड़े बदलाव की आहट देता है। इतिहास गवाह है कि जब भी युवा शक्ति ने आवाज़ उठाई है, तब सत्ताधीशों को बड़ी चोट पहुंची है। फिलहाल छात्र संगठनों ने आंदोलन बढ़ने की जो चेतावनी दी है, उसे मोदी सरकार को सुनना चाहिए। क्योंकि जो सवाल छात्र उठा रहे हैं, वो बेमानी नहीं हैं, न ही इनमें किसी एक पार्टी का एजेंडा बढ़ाया जा रहा है। बल्कि यह समाज के समग्र विकास और युवा पीढ़ी की बेहतरी के लिए ही है। इसी बेहतरी का दावा नरेन्द्र मोदी कई बार करते रहे हैं। संकल्प, ऊर्जा, दृढ़ विश्वास, जैसे शब्दों के दोहराव अलग-अलग तरीके से करते हुए श्री मोदी कई मंचों से यह बात कह चुके हैं कि उनकी सारी नीतियां और फैसले देश को विकास की राह पर ले जा रहे हैं, जिसमें नयी पीढ़ी के लिए सब कुछ अच्छा ही अच्छा है। लेकिन हकीकत कुछ और ही है। छात्रों के सामने अब केवल डिग्री हासिल करने के बाद नौकरी मिलने की चिंता ही नहीं है, बल्कि उस डिग्री की राह में भी अब कई रोड़े आ रहे हैं। पेपर लीक और परीक्षाओं में कई किस्म की धांधलियां तो एक बड़ी समस्या है ही, इसके अलावा अब वैचारिक मतभेद रखने पर भी छात्र अन्याय का शिकार हो रहे हैं।

    ताजा प्रकरण नयी दिल्ली से ही सामने आया है, जहां डॉ. बीआर आंबेडकर विश्वविद्यालय में अंतिम वर्ष की एमए छात्रा को इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर विश्वविद्यालय की कुलपति अनु सिंह लाठर द्वारा दिए गए भाषण की कथित रूप से आलोचना करने के लिए निलंबित कर दिया गया है। खबर के मुताबिक कुलपति लाठर ने अपने भाषण में कहा था कि राम जन्मभूमि आंदोलन 525 साल पुराना है और यह कोई नया मुद्दा नहीं है। कुलपति ने राम मंदिर की स्थापना के लिए राज्य की सराहना की और डॉ. बीआर आंबेडकर को सिफ़र् दलित समुदाय का व्यक्ति न मानकर राष्ट्रीय व्यक्ति बनाने की बात कही थी। इस भाषण के बाद 28 जनवरी को आईसा से जुड़ी छात्रा ने कुलपति द्वारा की गई टिप्पणियों की निंदा की थी। जिस पर 21 मार्च को प्रॉक्टोरियल बोर्ड के एक आदेश में विश्वविद्यालय ने 'अनुशासनहीनता' और संस्थान प्रमुख के खिलाफ 'अपमानजनक भाषा' के इस्तेमाल का आरोप लगाया। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप छात्रा को छह महीने (पूर्ण शीतकालीन सेमेस्टर) के लिए निलंबित कर दिया गया है तथा इस अवधि के दौरान परिसर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

    विश्वविद्यालय ने कहा कि छात्रा को 17 फरवरी को कारण बताओ नोटिस दिया गया था और उसे 28 फरवरी को प्रॉक्टोरल बोर्ड के साथ व्यक्तिगत बातचीत के लिए उसके माता-पिता के साथ बुलाया गया था। निलंबन आदेश में कहा गया है कि केवल छात्रा ही प्रॉक्टोरल मीटिंग में आई थी और उसके माता-पिता नहीं आए थे। प्रॉक्टोरल मीटिंग के बाद छात्रा द्वारा लिखित प्रतिक्रिया 'माफी मांगने वाली नहीं' थी।

    वहीं निलंबित छात्रा ने आरोप लगाया कि उन्हें इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वह मुस्लिम पहचान वाली महिला हैं। उन्होंने कहा, 'मैं अपने अंतिम सेमेस्टर में हूं और अंतिम सबमिशन मई के मध्य में होना है। यह मेरी डिग्री को एक साल के लिए बढ़ाने का एक बहुत ही सचेत प्रयास है।' पीड़ित छात्रा ने एक गंभीर सवाल उठाया है कि, 'यदि केवल सवाल पूछने के कृत्य को ही आपराधिक बना दिया जाए तो हमारे विश्वविद्यालयों को किस बात के लिए खड़ा होना चाहिए' इस मानसिक और भावनात्मक उत्पीड़न को और बढ़ाने के पीछे स्पष्ट प्रेरणा और कुछ नहीं बल्कि प्रशासन द्वारा सभी असहमत छात्रों के लिए एक उदाहरण स्थापित करने और उनकी आवाज को अनिश्चितकाल के लिए दबाने की एक जानबूझकर की गई साजिश है।'

    विश्वविद्यालय इस टिप्पणी पर क्या प्रतिक्रिया देता है, यह देखना होगा। लेकिन सोमवार को छात्र संगठनों ने शिक्षा प्रणाली में गहरी जड़ें जमा चुकी जिस विसंगति की तरफ सरकार का ध्यान दिलाना चाहा है, वह इस प्रकरण से सही साबित हो रही है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही हैदराबाद विवि में रोहित वेमुला की आत्महत्या की दुखद घटना घटी थी, इसमें भी विवि प्रशासन पर गंभीर सवाल उठे थे। ऐसे मामले और भी हुए, लेकिन सरकार का रवैया इस तरफ संवेदनहीन ही बना हुआ है। अच्छी शिक्षा और नौकरी के सवाल के साथ-साथ विवि में पक्षपातरहित माहौल और खुलकर अपनी राय रखने की आजादी मिलेगी, तभी सही मायनों में लोकतंत्र मजबूत हो पाएगा।

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